डेरा सच्चा सौदा मुखी गुरमीत राम रहीम को एक बार फिर 40 दिन की पैरोल मिलने पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने ऐतराज जताया है। SGPC प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने सरकार पर कम गिनती वर्ग के लिए अगल नीतियों का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि अगर बलात्कार-कत्ल के दोषी को पैरोल मिल सकती है तो बंदी सिखों को क्यों नहीं।
एडवोकेट धामी ने कहा कि अगर कत्ल व बलात्कारी को इस समाज में घूमने के लिए खुला छोड़ा जा सकता है तो फिर धर्म के लिए संघर्ष करने वाले सिख बंदियों को रिहा करना क्यों मुश्किल है। सरकारों की यह दोहरी नीति सिखों के अंदर बे-विश्वासी का माहौल पैदा कर रही है। अगर राम रहीम साल में 4 बार बाहर आ सकता है तो बंदी सिखों की रिहाई के लिए उठाई जा रही आवाज क्यों नहीं सुनी जा रही।
कम गिनती वर्ग को किया जा रहा नजरअंदाज
एडवोकेट धामी ने कहा कि भारत देश के अंदर हर धर्म के लोग बसते हैं। पर दुख की बात है कि यहां संविधान की उल्लंघना करके कम गिनती के प्रति अगल नीति को बढ़ावा दिया जा रहा है। लगातार कम गिनती वर्ग की तरफ नफरत भरा रवैया अख्तियार कर नजरअंदाज किया जा रहा है। इतना ही नहीं, सजा पूरी कर चुके सिखों को पैरोल तक नहीं दी जा रही।
सिखों में बेगानों जैसा अहसास प्रबल होगा
एडवोकेट धामी ने कहा कि अगर देश में सिखों के अंदर बेगानों जैसा अहसास प्रबल होगा तो यह देश के लिए ठीक नहीं है। बंदी सिखों के मामले में सरकारें हमदर्दी भरी नीति अपनाएं और जेल के अंदर उनके किरदारों को मुख्य रखते हुए रिहाई का फैसला लें।